Wednesday, 22 April 2015

विदा की कविता -2

पत्तों से खाली, कटीली सी दिखने वाली
पेड़ की डालियों के झरोखे से,
चाँद दिखा नहीं जैसे दिखता है,
चित्रों में, बनावटों में, उपमाओं में,
रूपकों में, कवि की कल्पनाओं में

चाँद खो गया के ख्याल ने
रात को डरावने ख़्वाबों से भर दिया

आँखें मीचते सुबह उठी तो रात ने देखा,
डालियों पर चाँदनी की उजली,
सुनहरी पत्तियां निकली थी

वक़्त मिले तो अगले बसंत तुम
बैगनी फूलों वाले पेड़ की छाया में, या यूँ ही,
चाँद को देखना कभी, गौर से|

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