Wednesday, 11 February 2015

चाँद और जंजीरें

टिमटिमाते तारों की फुसफुसाहट में,
सुना है, चाँद रात के दामन में छिपा,
अब रात हो चुका है,
वो आधे-पौने खिलौने, चाँद से दिखने वाले
अब टूट चुके हैं, मिल चुके हैं शीत धरा की मिटटी में,
कोई खिड़की की जाली से एकटक देख रहा है आसमाँ की ओर,
इन सबके बीच आज अचानक यूँ ही,
रात अपने ही अँधेरे से ऊब गयी,
बहुत बरसों में पहली मर्तबा लगा है जैसे,
रात स्याह न रही, शादाब हो गयी है
आज अँधेरा छटने से पहले,
इसकी जंजीरें खुल चुकी होंगी |

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