हजारों ख्वाहिशें पंख फैलाए,बिना बताये
सुरवीन अंधेरों से झांकती,यादों के दामन में लिपटकर
मुझ से मिलने को बेताब चली आती हैं
पूरा होने की उम्मीद में संजोया था जिन्हें
कभी भूला हूँ तो याद बनकर
कभी भटका हूँ तो राह बनकर
कभी विद्रोह उठे तो बवाल बनकर
कभी खोया हूँ तो ख्याल बनकर
कभी नींद में हूँ तो सपना बनकर
जब आँख खुले तो अपना बनकर
कभी डूबा हूँ तो तिनका बनकर
कभी दर्द पुराना दिल का बनकर
कभी आँखों की रौशनी बनकर
कभी मीठी सी चाशनी बनकर
रेगिस्तान में पानी बनकर
एक भूली हुई कहानी बनकर
कभी माथे की लकीर बनकर
कभी गाता हुआ फ़कीर बनकर
कभी हौंसला कभी संबल बनकर
कड़कते जाड़े में फटा हुआ कम्बल बनकर
कभी लोभ ,कभी द्वेष बनकर
हारे हुए मन का क्लेश बनकर
वीरान पगडंडी पे पदचिन्ह बनकर
टूटे हुए आईने में प्रतिबिम्ब बनकर
कभी रूठा हुआ साथी बनकर
बुझे दीप की बाती बनकर
मजधार में सूत्रधार बनकर
हिचकोलों में पतवार बनकर
सब भूल के हंसने का बहाना बनकर
यूँ ही आने-जाने का फ़साना बनकर
चलते रहने की वजह बनकर
मन की कुंठाओं पे फतह बनकर
जो भर ना सके वक़्त के साथ
उन पुराने ज़ख्मों पर सतह बनकर
अमन की आस बनकर
अडिग विश्वास बनकर
कदम लडखडाये तो ज़मीन बनकर
डगमगाया ज़मीर तो आबिदीन बनकर
कभी चोट खाया स्वाभिमान बनकर
वो छोटा सा अरमान बनकर
हजारों ख्वाहिशें पंख फैलाए,बिना बताये
सुरवीन अंधेरों से झांकती,यादों के दामन में लिपटकर
मुझ से मिलने को बेताब चली आती हैं
अधूरा रहकर खुद, मुझे पूरा करती हैं
पूरा होने की उम्मीद में संजोया था जिन्हें
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