जोश दोगुना या मन
आधा
क्यों रेत में
जलते ये पाँव
क्या ताल-तलैय्या,
क्या नीम छाँव
क्यों रुकना साथी
के मिलने तक
क्या चलना पैरों
के थकने तक
क्यों मौसम
बेमौसम बारिश
क्या कम्बल
बरसाती की सोच
क्यों पदचिन्हों
का आसरा
और क्या मीलों का
फासला
क्यों सांझ ढले
मुड़ना वापस
क्या वाहन तकने
को चौकस
क्यों रखनी
मिट्टी राह की संजोकर
कीमत से जब भूसी
या चोकर
जब राहें टेढ़ी
मेढ़ी हों,
जब लकीरें गाढ़ी
उकेरी हों,
फिर क्या पड़ाव
क्या पगबाधा
हो जोश दोगुना या
मन आधा
अब हार क्या और
जीत क्या
ये खेल ख़तम होना
कहाँ
क्यों पल-पल भारी
फिर सामान हुआ
क्या रह-रह डिगता
अब ईमान हुआ
क्यों खाली होता
जाता अन्तः
क्या घिसते चप्पल
से कील चुभे
ये माथे के मेरे
श्रमबिंदु बोझिल
चमके तेज से,
या लाचार कहें
क्या मृगतृष्णा,
क्या कस्तूरी
कब चीखा मैं ,कब मौन ज़रूरी
क्यों आँखें थकती
पर नींद नहीं
क्या फिर जगने की
उम्मीद नहीं
अब फुंसी रिसती
जाती क्यों
ये रस्सी घिसती
जाती क्यों
जब अश्रु पसीने
से मिले
किनारे अधर है
रक्त खिले
जब पलकें राहें
तकती उस पार
क्यों मील शिलाएं
गिननी इस बार
अब क्या पड़ाव
क्या पगबाधा
हो जोश दोगुना या
मन आधा