१
ओ संगिनी! कितने रहस्य हैं तेरी आँखों में!
कितनी नदियाँ, कितने द्वीप
असंख्य पक्षी और उनके घोंसले
अंधेर चुप्पी और साँझ-संगीत
खिड़की के आकार में आकाश की छाया
एक आदमकद जगह तुझमें ख़ाली है
तुझे मालूम है?
२
प्रकृति तू!
मैं अदना मनुज
मैं तेरा हूँ?
तू कौन है?
३
समुद्र! मेरी व्यथा सुन
सुन समुद्र, मेरा चीतकार सुन
बाँट ले मुझसे मेरा महान दुःख
मेरी व्यथा तुझे मामूली मालूम होती है?a
मैं जा रहा हूँ अनंत!
फिर तेरे तट पर चोटिल होने नहीं आऊँगा
४
ढलती बायर में मख़मली तेरी साँस से
छूटकर अतल की ओर गिरी जीवन-औषधि
अतल के तल में तूने ज़रूर कोई तिलिस्म बाँध रखा होगा
तू मिलेगी, ओ प्राणिनी?
५
मैं तेरी भाषा से अनुवाद करता हूँ
और पाता हूँ कि अबूझ सब चिन्ह जान लिए हैं मैंने
तृष्णा- बौराती जो थी अब बौराती नहीं
भीतर वही शीत, कँपाती, सिरहाती- अज्ञात भय की सहचरा
दीवार की शक्ल उम्मीद का पहलू है?
६
एक नए रस की तलाश में
जंगल के हृदय में हम भटकते हैं
पत्तों से टपकती बूँद का तेरे गाल पर बोसा
प्रीत का नया रूपक बन सकेगा?
७
साँझ भी इस तरह बज सकती है क्या कभी
जिस तरह छिड़ गया हूँ मैं इस पहर
और दौड़ रहा हूँ हताश
ये किस ओर, किर छोर, किस दिशा से बह निकला है समुद्र
अपनी अस्ति कहाँ छुपाऊँ
तू ही बता
बता
८
वो जो गा रहा है, मुझे नहीं जानता
मैं जो सुन रहा हूँ, समझता हूँ गाता है आकाश
ओ सखी! पदचिंह तेरे उठ गए हैं धरा से
तैर रहे हैं हवा पर तेरी साँस के फूल
बज रहे हैं पेड़, खुल रही हैं जड़ों की गाँठें
समूचा कलरव उड़ गया है उस ओर जिधर झंकार उठी है
तूने डूबते सूरज में बाँध दिया हो इकतारा कोई
९
मध्यरात्रि में विदा का गीत
ट्यूलिप फूल की कौंधती गंध बन जाता है
दीवार पर लटके चित्रों का कोलाहल
जो दिन भर की चुप्पी से छिपा रहता है
यकायक मुखर हो उठता है
एक भूली हुई बात भूल जाती है फिर से मुझे
१०
सहेजकर रखो
बादल, फूल, पगडंडी
नमी, बेबाक़ी, सपने
खाली जगहें सहेजकर रखो
जब तक मुमकिन हो
११
हँसी अगर फ़लसफ़ा होता
तो मैं कहता कोई किताब सुझाओ इस पर
अगर कोई फूल होता
तो किताब में रख देने से सूख जाता
नदी अगर होती कोई
तो मैं तुमसे कहता चलो, लम्बी सैर पर चलें
हँसी कोई धुन होती
तो हम बार-बार सुनते उसे
और किसी एक जगह पर ठहरकर सोचते
पूरा हो गया है संगीत
हँसी अगर कोई लहर होती
तो हम डूबते डूबते डूब जाते
चिरमित्रा सुनाई क्यों नहीं तुमने?
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