मुझे बहुत कुछ कहना था
मैं देर तक चुप रहा
मैंने सुना था कि कविता एक बीमारी है
जो अपनी मियाद पूरी करके चली जाती है
चली जाती है से मुझे संतोष नहीं हुआ
और मैं भी चला गया कविता के पीछे-पीछे
मैंने देखा उसे उथले एक ताल में चाँद की परछायीं बने हुए
एक बादल का नाम याद करने की कोशिश में
डुबोए हुए दस्तावाजों पर मछलियों के ख़व्वाबों के पैटर्न उतारते हुए
कविता सर्द पानी में ठिठुरती
चाँद की परछायीं कविता
मुझे बहुत कुछ कहना था
मुझे आख़िरकार चुप हो जाना था
चली जाती है कविता मैंने सुना था
ख़्वाबों के पैटर्न उतारती
कविता जैसी एक कविता
मुझे कोई रोक लेता तो अच्छा था
मेरे चले जाने से पहले मेरी मियाद पूरी होती
और मैं कहता अब मुझे चले जाना चाहिए
उथले ताल में चाँद की परछायीं - कविता
कविता जो नदी भी हो सकती थी
जिसे मेरा सागर होना था
आसमान में जिसकी परछायीं देखकर मैं समझता
अब मैं आ गया हूँ यहाँ -
चौखट को, दरवाज़ों को पहचानता हूँ
पहचानता हूँ छूकर
जिस तरह बिन छुए पहचानता हूँ छुआ जाना
मेरी हथेली में बंद गोरय्या का बच्चा
सुरक्षित अंतर किसी नए कवि का
हथेली के खुलने से रेखाएँ उड़ जाएँगी
कविता चली जाएगी
नदी से एक उथला ताल होने की ओर
मुझे बहुत कुछ कहना था
आख़िरकार चुप हो जाएगी चिड़िया मैं जानता था
धुल जाएँगी वसंत की रेखाएँ ।
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