ख़ाली जगहें
जो कि अब बची हैं बहुत कम
धीरे-धीरे भरने से दूर एकाकी में दम तोड़ती हुईं
बहुत बहुत अकेली मिलेगी एक ख़ाली जगह
जंगली फूल की तरह
जिसे किसी का इंतेज़ार नहीं
क्या सच में?
एक कँटीला फूल
तुम कहोगे
कोई हंस पड़ेगा
कोई चुप रहेगा
एक ख़ाली जगह
बारिश में भीगे खप्पर की तरह
टूट पड़ेगी तुम पर
बच गए तो भी बे-आसरे तुम
एक ख़ाली जगह है गीले तिरपाल के नीचे
एक जगह लहराते दुपट्टे से घेरी हुई
धूप में गोलाकार एक आकृति
एक मठ के ऊपर से उड़ते हुए कबूतर
अनचाहे ही छोड़ते हुए पहलू में
संग ली गयी साँस
एक ख़ाली जगह यूँ ही
मोरपंख उड़ता हुआ
फटा-पुराना कैलेंडर
आलाप उठता हुआ
होश से परे
बेहोशी की जगह एक
बाँधा हुआ बिस्तर
रेला-ठेला हाथ-गाड़ी
धक्के से सड़क नापती
एक क़दम-दो-मील-तीन समुद्र
बाढ़ की तरह चल निकली है जगह एक
भागो-भागो छुप जाओ
अब छुपने को कोई जगह नहीं है
मिलने को एक जगह थी
भर गयी
नींद से छूटे हुए
वेल्वेट के पॉर्च्मेंट में
कोने-कोने दीवारों के
चींटियों के बिल
झींगूरों के बसेरे
लेकर बंद नलों तक
ख़ाली बर्तन सूखे होंठ
वो पिघल गया
देखो वो पिघल गया
धूप जगह घेरती तो लिखा होता
देखो धूप निकल आयी उसकी जगह
एक दोपहरी
मकान के तीसरे तल्ले में गंगा आरती पढ़ी जाती
शाम को सूखे का शोक
एक धागा जोड़कर
सुई में पिरोया हुआ
नज़र भर अँधेरा फलाँगकर
उड़ा-उड़ा-उड़ा
छत से टकरा गया
एक जगह टकराने की भी
लिखा जा सकता दुःख
लिखी गयी जगह
हँसी हवा ख़याल पंख
पुराने रूपक पुराने कवि
बैठकी मज़ार नाचघर
एक-एक कर तब्दील होते गुलाब के फूलों में
वहीं से आयी होंगी चिट्ठियाँ
जहाँ से आते हैं ख़्वाब
जहाँ से आते नहीं पंछी
जिस तरफ़ दुआ हवा के भार से दबी
चली जाती
नाम-अनाम प्रेम
चले आओ चले आओ
पुकारते ज़बरन बधे घंट
किस बिधि पाऊँ तुमको घनश्याम
वो आता होगा
होगा आता
आटा गीला
पलस्टर उखड़ा हुआ
दीवार में बन रही जगह दूब के उग आने की|