Tuesday, 1 October 2013

एक फी़की हँसी


 एक फी़की हँसी में गुम हैं

वो चाँद वो सितारे

वो चकाचौंध के नज़ारे

वो बेबात की उदासी,

में शाम का ढलना

वो बेखबर मंजि़ल-ए-जहाँ से

मीलों तक चलना

वो चिलमन में छुपा

एक गीत, एक जुनून

वो हल्की सी बारिश में,

जन्नत-सा सुकून

वो बड़ी-सी मुस्कान

सब सवालों का हल

वो सदियों-से लंबा,

एक छोटा-सा पल

एक फ़ीकी हँसी मे गुम हैं।

 

वे धमाके का सन्नाटा

वो धड़कनों का शोर

वो राहो के वीराने

वो अँधेरा घनघोर

वो ख्वाबों में उनका

चुपके से चले आना

वो टेप में बजता

एक लोरी-सा गाना

वो खुले आसमां में

पंछियों सी उड़ान

वो पुराने तहखाने में रखे

गीता और कुरान

वो हल्के-से दर्द में माँ-माँ चिल्लाना,

वो छोटी सी बात पर जोर से खिलखिलाना

एक फ़ीकी हँसी में गुम हैं।

 

वो हवा के थपेडे़ से लौ का थरथराना

वो मंदिर की घंटियों में आस्था की गूँज

वो पलकों में नमी, वो सूना आँगन

वो राहगीर की प्यास, वो आस की बूँद

वो भावों के बहाव में शब्दों का खो जाना

वो शाम के सूरज की लाली का जादू

वो आँखों ही आँखों में कहानी कह जाना

वो छोटी सी ख्वाहिश का अधूरा रह जाना

वो पतझड़ के मौसम में पत्तों का बिछौना

वो हाथ से छूटा मिटटी का खिलौना

वो छोटे से बच्चे का भोलापन रूहानी

वो काँपते हुए हाथों में छुपी कोर्इ कहानी

ज्यों बीता हो अरसा किसी के इंतजार में

या कर दिया हो पंछी को दूर घोंसले से

तेज, बहुत तेज़ बहती बयार ने

वो बच्चा, वो पंछी, वो बूढ़ा, वो बयार

वो स्मृतियों का खाफिला, वो माँ का प्यार

एक फ़ीकी हँसी में गुम हैं।

 

 


 

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