Wednesday, 17 July 2013

कल और आज

 

देखते ही देखते हाथों से रेत फिसल गयी 
कल हम कहाँ थे आज कहाँ आ गए 
तुम कहते हो हो गए बरसों हमें इस अंजुमन में 
तुमसे मिलना तो लेकिन,जैसे कल की ही बात थी 
यूँ तो दौड़े हैं मीलों इस मंजिल के पीछे बेतहाशा 
टांगें थकी नहीं,शायद रास्तों से मोहब्बत थी कल तक 
कल,
हाँ कल ही तो गुज़रे थे तुम सामने वाली सड़क से 
नज़रें मिलते ही नज़रें चुरा ली थी तुमने,याद है?
कुछ बात रही होगी ज़रूर तुम्हारी झेंप के पीछे 
हाँ, कल ही तो वो पेड़ लगाया था आँगन में 
कुछ खट्टे,कुछ मीठे फल,कुछ खाए थे 
कुछ खिलाये थे, पड़ोस के करीम चाचा को, याद है?
कल ही तो मेरे दर्द से मन में रो पड़े थे तुम 
कुछ कहा नहीं तुमने वो और बात थी 
कल ही तो वो बांसुरी वाला गली से गुज़रा था मेरी 
जाने वो धुन उसकी मैंने दोबारा क्यूँ ना सुनी 

कल ही तो सोचा था कह दूं तुमसे 
सारी व्यथाएँ मन की,
फिर तुम्हें मुस्कुराता देखकर मैं 
सब कुछ भूल गया 
कल ही तो खिली धुप में बारिश हुई थी जम के,
जब इन्द्रधनुष के रंग तुमने दिखाए थे मुझे 
हाँ,कल ही तो दिवाली पे सारे मोहल्ले में रौनक थी 
तुम आये नहीं, तो मैंने दीया नहीं जलाया 
कल ही तो लिखते-लिखते आँख लग गयी थी मेरी 
तुमने चुपके से कविता में कुछ पंक्तियाँ जोड़ दी थीं,याद है?

हाँ कल ही तो मुकेश के गीत ने,किये थे कुछ ज़ख्म ताज़ा 
तुमने ही समझाया था,मुकद्दर पे बस नहीं किसी का 
कल ही पूरी रात जागा था मैं नींद के इंतज़ार में 
सुबह हुई तो लगा कि सपना टूट गया 
कल ही किनारे पर बैठकर मैंने नदी को उथला पाया था 
डूबने के दर से तुम दूर खींच लाये थे मुझे,याद है ?
कल ही तो कुछ कर दिखने की तमन्ना जागी थी मन में  
फिर भेडचाल में खो गया ,आने वाले कल का सितारा 
कल ही शाहिद अली की कविता ने कश्मीर में जन्नत दिखाई थी 
चार रोज़ सपनों में भी छाया था सुरूर उसका 
सुरूर ढलने से पहले लेकिन,तुम्हारी आँखें देख ली
लगा की तलाश ख़त्म हुई खानाबदोश दिल की 

कल,हाँ कल ही तो लगा था कि साँसों में ज़िन्दगी है 
कल ही तो ख़त्म किया था खुद से 
लम्बी नाराज़गी का सिलसिला 
और आज तुमने यूँ आँखें फेर ली फिर से, 
सब यारों की तरह,ले गए यारी पुरानी
और दे गए ज़ख्म नए 
देखते ही देखते हाथों से रेत फिसल गयी 
कल हम कहाँ थे आज कहाँ आ गए  

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