Wednesday, 19 March 2014

जागृति

मेरी आवाज़ सुनो
भूत के साए से दामन छुड़ाता,
भविष्य के स्वप्न में शह खोजता 
तुम्हारे अस्तित्व के अवलोकन में डूबा 
मैं वर्तमान हूँ तुम्हारा | 

मुझे गौर से देखो
आँखें बंद करने पर भी 
मैं कभी अदृश्य नहीं होता
प्रकाश और अन्धकार से पृथक 
मैं पारदर्शी सत्य हूँ तुम्हारा | 

मुझे आत्मसात कर लो 
तुम मुझसे ही बंधे हो
मैं ही तुम्हे स्वच्छंद करता हूँ  
तुम्हारी आब-ओ-हवा में शांत बहता 
मैं खोया आबिदीन हूँ तुम्हारा |    

मेरी खोज करो,
मैं ही अनुमेहा की शीतलता हूँ ,
मेरी तलाश भर ही उद्देश्य है, मेरी प्राप्ति तुम्हारा अंत 
सफ़र के हर मोड़ पर तुम्हे टुकड़ों में मिलती,
मैं तुम्हारी अन्तःजागृति हूँ | 

Tuesday, 11 March 2014

तलाश पूरी हुई

अजनबी शहर में किसी को ढूंढता था हर घडी,
तुम मिले हो आज तो जैसे तलाश पूरी हुई
पैरों के छालों को भी कुछ तलब है अब,
इस संगमरमर पे फूट जाने की
ये दिल भी अकेला कब तक रहता सलामत
ख्वाहिश जगी है इसे भी, अब गिरकर टूट जाने की
अब कहीं ठिकाना हो, मुझे खानाबदोश का भी
मैं भी शाम को पंछी सा घर लौट कर आऊँ
ये शाख पत्ते सुने डूबकर इस उम्मीद में,
कुछ नज़्म लिखूं होश खोकर, कुछ गीत गाऊं
तुम झांकोगे जब इनमे, तो गूंजेंगे बोल अनकहे
फिर यहाँ छेड़ोगे तुम साँसें मेरी अनछुई
अजनबी शहर में किसी को ढूंढता था हर घडी
तुम मिले हो आज तो जैसे तलाश पूरी हुई |

कुछ खलिश थी उस ख्वाब में जो बरसों से संजोये बैठा था
आज खुली है आँख तो तसव्वुर ने ज़मी को छू लिया
फितूर जागा है फिर, मुस्कुराता है, कनखियों से देखता है मुझे
नज़रें चुराता ,मैं बचता फिरता हूँ उसके तासुर में खोने से
कल तक चीथड़े लिए फिरता था जहाँ तार-तार मन के
आज समेटता हूँ वहीँ अरमानों की बिखरी रुई
अजनबी शहर में किसी को ढूंढता था हर घडी
तुम मिले हो आज तो जैसे तलाश पूरी हुई |