एकांत पथ पर आज तुम्हारे,
आत्मा के कुछ अंश मिले
पेपर-कट की कलाकृति में,
ज्यों क़तर-क़तर बिखराए हों,
कितने गहरे शीतल रंगों से,
उथले भावों को रूप मिले,
कितने खोये, भटके पंछी
ज्यों सांझ ढले घर आये हों,
अधमिटे पदचिन्हों के
अश्रु-मरूद्यान,
पुलकित हो गीत सुनाते हैं,
अगणित वर्षों की शुष्क धरा पर,
ज्यों जलद-कुटुंब फिर छाये हों,
स्मृतिचिन्ह जो तुमने छुपा दिए थे,
क्या स्मृति परीक्षा थी यह भी,
मैं हारा तुम भी हारे समय से,
ज्यों प्रतिबिम्ब न मिटने पाए हों,
तुम सरित बनकर जब बहते थे,
हर रक्त-कोष को था आभास
तुम्हारा
तुम आये-गए, हाय वे खाली रहे,
ज्यों भरकर भी भर न पाए हों,
अमर हुए पर मुझे मिले कब,
जीवित भर थे, हाय जीवंत कहाँ
वो आत्मा के अंश तुम्हारे,
ज्यों नूतन देह ढूंढने आये हों,
धूल धुल-धुल जाती वीणा की तारों
से,
कल्पित दृश्यों को पूरक संगीत मिला
वे गाते फिर चुप हो जाते अनायास
यूँ,
ज्यों कवि का मर्म समझ न पाए हों,
कैची की शक्ल में दीवार यहाँ,
कागज़ का ह्रदय मेरा-तुम्हारा,
कैनवस पर फैले सब रंग एक से,
ज्यों द्वंद्व मिटाने आयें हो,
एकांत पथ पर आज तुम्हारे,
आत्मा के कुछ अंश मिले
पेपर-कट की कलाकृति में,
ज्यों क़तर-क़तर बिखराए हों|
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