आओ नीम की छाँव में बैठकर एक दिन
राज़ सारे खोले दें हम दिल के
सारी अधूरी बातें कह जाएँ अधरों पे अटकी भोलेपन में
दिखें नए-नए से, चमके से ,खिल के
छोड़ें सब जंजाल बरसों से सडती-गलती कुंठाओं के
दिखावे की चादर में लिपटे अगणित चेहरों के,
बौराती रौशनी की झिलमिल क्रीडा में
भूली-भटकी मंशाओं के
सब सेकें पकने तक ख्वाबों को सर्दी की धूप में
बह जाने दें सहज ही ,
पलकों पे रुकी ओस की बूंदों को
पीड़ा के सीप में अटके थे ज्यों मोती के रूप में
आओ एक दिन यूँ ही भूल जाएँ अहम् के रोग सारे
कहने दो बरबस उनको जो कहते हैं लोग सारे
हम सारी कडवाहट अपनी नीम के पत्तों में छोड़ आयें
बच्चे का सा सौमिल मन लेकर,आओ फिर से मीठे हो जाएँ
पत्तों में सर-सर करती हवाओं का
आओ हम वो सम्मोहक संगीत सुने
कोयल की भूली बिसरी यादों की गूँज में
खोये कुछ नगमे कुछ गीत सुने
आओ देखें खुली आखों से
कैसे छिपता है सूरज,
शाम के परदे में शर्म से लाल होकर
सुने कैसे गरजते हैं बादल और स्वतः चुप हो जाते हैं
उम्मीद में बारिश की डूबें आज ,
आओ बूंदों की छुवन महसूस करें
नीम का लेप लगाते हाथों के से स्पर्श में
मिट जाने दें जलन सारी, आओ उधड़े ज़ख्मों को भरें
अब पर्दों को गिर जाने दें, ज्यों ख़त्म हुआ अभिनय सारा
उलझी गांठे खोलें मन की ,आओ दुविधाएँ दूर करें मिल के
आओ नीम की छाँव में बैठकर एक दिन
राज़ सारे खोले दें हम दिल के
No comments:
Post a Comment