दो प्रेम भरे भीगे नयन तेरे,
एक लोरी बहती होठों से ह्रदय तक मेरे ,
माँ जन्नत में बोल, क्या ये सब भी मिलता होगा?
माना होंगी परियां सफ़ेद पोषक में,
नीले आसमां में किसी ख्वाब सी उडती,
पर तुझ सा सुन्दर, स्वयं नील के फैलाव सा
बोल, क्या परियों में भी कोई दिखता होगा?
माना हसरतें रहेंगी नहीं,
शांत होगा मन गहरे समुद्र सा,
गीत बिसर जायेंगे सारे चंचल मन को,
सुकूँ होगा मेरे कण-कण का परिचायक
तेरे स्पर्श सा आनंद लेकिन माँ,
बोल क्या मिलेगा वहां इस ज़ख़्मी तन को?
फूलों की सेज होगी वहां तू कहती है,
सर रखकर होगा अनुभव उस पर देवों की कोमलता का,
तेरी गोद सी अलौकिक अनुभूति मगर माँ,
क्या होगी वहां, बिसराती मुझे जीवन की नीरसता को?
चंदा, हाँ वही जिसको पाने की ख्वाहिश बचपन से थी,
तू कहती है होगा वो वहां बहुत पास मेरे,
पर डर लगता है गर उसने मुझको ना पहचाना तो?
झिलमिल तारों ने स्वीकार किया न मुझको अपनाना तो?
तू कहती है महकता है वो जहाँ,
खुशबू से फुलवारी की,
संगीत भी सुनाई देता है मादक,
बंसी से कान्हा-बनवारी की,
पर गीत तेरे होठों के माँ, क्या नहीं सुनाई देंगे मुझको भोर-सांझ वहां?
तेरी मुस्कान से सुन्दर फूल कोई माँ ,
क्या जन्नत में भी खिलता होगा?
अब और न बहला मुझे इन चित्रों से,
भौतिक आनंद के भ्रामक पूरक,
मन के इन झूठे मित्रों से,
काटों से उतरी ह्रदय की सीवन का धागा,
क्या तेरे कह देने भर से वहां सिलता होगा?
दो प्रेम भरे भीगे नयन तेरे,
एक लोरी बहती होठों से ह्रदय तक मेरे ,
माँ जन्नत में बोल, क्या ये सब भी मिलता होगा?
एक लोरी बहती होठों से ह्रदय तक मेरे ,
माँ जन्नत में बोल, क्या ये सब भी मिलता होगा?
माना होंगी परियां सफ़ेद पोषक में,
नीले आसमां में किसी ख्वाब सी उडती,
पर तुझ सा सुन्दर, स्वयं नील के फैलाव सा
बोल, क्या परियों में भी कोई दिखता होगा?
माना हसरतें रहेंगी नहीं,
शांत होगा मन गहरे समुद्र सा,
गीत बिसर जायेंगे सारे चंचल मन को,
सुकूँ होगा मेरे कण-कण का परिचायक
तेरे स्पर्श सा आनंद लेकिन माँ,
बोल क्या मिलेगा वहां इस ज़ख़्मी तन को?
फूलों की सेज होगी वहां तू कहती है,
सर रखकर होगा अनुभव उस पर देवों की कोमलता का,
तेरी गोद सी अलौकिक अनुभूति मगर माँ,
क्या होगी वहां, बिसराती मुझे जीवन की नीरसता को?
चंदा, हाँ वही जिसको पाने की ख्वाहिश बचपन से थी,
तू कहती है होगा वो वहां बहुत पास मेरे,
पर डर लगता है गर उसने मुझको ना पहचाना तो?
झिलमिल तारों ने स्वीकार किया न मुझको अपनाना तो?
तू कहती है महकता है वो जहाँ,
खुशबू से फुलवारी की,
संगीत भी सुनाई देता है मादक,
बंसी से कान्हा-बनवारी की,
पर गीत तेरे होठों के माँ, क्या नहीं सुनाई देंगे मुझको भोर-सांझ वहां?
तेरी मुस्कान से सुन्दर फूल कोई माँ ,
क्या जन्नत में भी खिलता होगा?
अब और न बहला मुझे इन चित्रों से,
भौतिक आनंद के भ्रामक पूरक,
मन के इन झूठे मित्रों से,
काटों से उतरी ह्रदय की सीवन का धागा,
क्या तेरे कह देने भर से वहां सिलता होगा?
दो प्रेम भरे भीगे नयन तेरे,
एक लोरी बहती होठों से ह्रदय तक मेरे ,
माँ जन्नत में बोल, क्या ये सब भी मिलता होगा?
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