तुम-ख्वाब या हकीकत
मैं धीरे धीरे तुमसे मिलता जाता हूँ
अब तुम ख्वाब हो या हकीकत
क्या फर्क पड़ता है
रास्तों पे गिरते पड़ते अब चलने लगा हूँ
लंगड़ाते हुए बेशक,
तुम्हें बिना बैसाखी के मिलूं
ये ख्वाहिश है मेरी
सारे संग्राम चोटिल मन में
रह रह कर तुम्हारी टीस जगाते हैं
तुम्हारी कसक को लेकिन संबल बना लिया मैंने
रास्ते यूँ ही कट जायेंगे तलाश में तुम्हारी हँसते-रोते
अब तुम ख्वाब हो या हकीकत
क्या फर्क पड़ता है
कोई और नहीं, कुछ और नहीं
बस तुम ही नज़र आओ यहाँ-वहाँ सूरत बदलकर
तुमसे कुछ कहूँ तो रूठ ना जाओ
तुम्हारी खोज में बस ये सोचकर
तमाशा बना रहा हूँ सरेआम अपना
तुम्हारी बातों से हुई हैं मुश्किलें आसान
जाने कितनी अनजाने में
तुम्हारी आँखों से कितनी उलझनें सुलझी हैं
कितने दफे साथी हुए तुम यूँ ही मेरे वीराने में
तुम्हारी शक्ल न देखी कभी
नाम भी तुम्हारा अनाम में ही खोया रहा
अब साथी पूछते हैं मुझसे पहचान तुम्हारी
क्या कहूँ किसी से मुझ में किस कदर गुम हो तुम
तुमसे अलग मैं,मुझसे अलग तुम
अब हैं कहाँ
मेरे किसी किस्से से चुराए किरदार हो शायद ,
या किसी अधूरी ख्वाहिश के अवशेष हो तुम
सच हो मेरे अस्तित्व के अपने,
या चेहरे का बदला वेश हो तुम
गीत हो तुम मेरे मन के रचे
फिर भी लबों से दूर हो तुम
ठहराव हो तुम्ही चेतन चित्त के
और दीवानापन हो, फितूर हो तुम
मेरी प्रेरणा हो तुम हर काव्य में छुपी,
मेरी जीने की ललक हो तुम
मेरी नींद से जुड़े मतिभ्रम भी तुम्ही हो ,
और खुली आँखों की चमक हो तुम,
बस तुम हो मेरे होने में,
हर पाने में,हर खोने में
अब तुम ख्वाब हो या हकीकत
क्या फर्क पड़ता है |
बहुत कम विरले होते हैं, जो ख्वाब का पीछा करते हैं|
ReplyDeleteनिंदिया के चाँद को जमीन पे छुपाने की कोशिश करते हैं|
ए शायर तू कहके तो देख, रूठता है तो रूठने दे यार को,
बड़ी अजीब है ये दुनिया देती ताने ऐसे प्यार को||
ए नादान ख्वाब ख्वाब नहीं रहता, या तो बन जाता है हकीकत या अफसाना||
अब मुझे भी दरिया का वो पार देखना है
ReplyDeleteडूबे हैं वो जिसमे वही मजधार देखना है
यहाँ पाँव ज़मीन पर हैं मेरे ना सर आसमान को ताकता है
बहुत ऊँचाई पर एक नुकीली पहाड़ी सी दिखती है मुझे कल की सुबह
अब बस आज की शाम ये रुखी ज़िन्दगी है बाकी,
गर कल हाथ थामे वो तो जन्नत हो अता मुझे,
या उस चोटी से गिरकर मिलती गहरी खाई का,
अब पता ही दे बता मुझे
अब हटे ये परदे दिखे शायर का चेहरा बेनकाब
गीतों से भरे गुमनाम सन्नाटे में
अब ख़त्म हो ये बेबात का सिलसिला,
ये नींद में डूबना,बेबस सपनों का आना-जाना
कल हकीकत बने ये ख्वाब तो बने अल्लाह की मर्ज़ी से
वर्ना बनना ही है इसको इक दिन भूला-बिसरा अफसाना ||