Tuesday, 24 March 2015

बंधन

चाँद का एक कतरा,
पेड़ के एक तने पर टिका,
हरे पत्तों के बीच बड़ा सब्ज़ दीखता है

चाँद के किनारे घिसकर कोमल हो गए हैं,
मानो पिघलकर बहने लगेंगे
अभी शाखों पर, पत्तों पर

कुछ डालियाँ कटीली सी, झुरमुट बनाये
हवा से हिलती हैं दायें-बाएं
और चाँद को चुभ जाती हैं पोरें उनकी,
चाँद की कोमल देह पर
हवाओं के गान- डालों के नृत्य
के पैटर्न उभरते हैं

और देखते ही बनती है
चाँद की पकी हुई मुस्कान
पेड़ में बुने हुए चाँद के रेशे,
रेशे चाँद के या कि पेड़ के?

हर शाम आसमां से खिड़की तक,
जो दुधिया रास्ता तय करके,
तुम चले आते हो दबे पाँव,
उसका एक सिरा पेड़ की जड़ों में
फंसा मालूम होता है |