सुनो प्रणव
चुके नहीं हो प्रणव अभी तुम
उठो कर्म उद्घोष सुनो
स्वप्निल हो पर मृत नहीं
अब जागो अपना पथ चुनो
ओ अटल मनुज, ओ अभय मीत,
अब चाहे पग-पग रोड़ गड़े
कुटिल मुस्कान से घेरे तुम्हे
,
चहुँ दिशा भले दानव खड़े
सुनो कदापि तुम धैर्य ना
खोना
सुनो अमन, विचलित ना होना
प्रेरक सार ना भूलो
संघर्षों का,
उज्जवल चरित निभाना तुम
वर्षों का,
बहुत हुआ ये गायन-क्रंदन
अब मल्हार नहीं, साकार चुनो
चुके नहीं हो प्रणव अभी तुम
उठो कर्म उद्घोष सुनो
सुनो अजय, इस प्रण के पथ पर
कौन किसी के साथ चला है
प्रण ही रक्षक,प्रण ही संबल
प्रण का ही आधार मिला है
प्रण से ही पर्वत विशाल,
सुगम बने हैं बाहें फैलाये,
प्रण से ही अनंत सागर के उर
में,
निर्भय तरती हैं अगणित नौकाएं
अब क्षणिक व्यथाओं को तजकर,
आँखें मूंदो और श्वास भरो,
मन के टूटे खाली पात्रो
में,
पुनः अचल विश्वास भरो
तुम्ही हो अर्जुन,तुम्ही
युधिष्ठिर
चलो धर्म को लक्ष्य चुनो
चुके नहीं हो प्रणव अभी तुम
उठो कर्म उद्घोष सुनो
कर्म तुम्हारा सारथी,
कर्म ही सतनाम है
प्रणव तुम्हे ये स्मरण रहे,
अब साथ तुम्हारे राम है |